Aman Mishra

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रुद्र : भाग-६

           रुद्र को ड्यूटी जॉइन किये पूरे चार दिन हो चुके हैं। आजकल पुलिस महकमे में कुछ ज्यादा ही व्यस्तता दिखाई देती है। ऐसा हो भी क्यों ना, नए एसीपी साहब ने सभी को आते ही काम पर लगा दिया था। रुद्र ने आते ही सभी को पिछले १० सालों में देश के अलग-अलग हिस्सों में बढ़ रहे आपराधिक मामलों की एक सूची तैयार करने को कहा था।
            शाम के ६ बज चुके थे। रुद्र अभय के साथ अपने कैबिन में बैठा हुआ था। रुद्र अपने लैपटॉप में कुछ देख रहा था और अभय उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठा सामने पड़े फाइलों के ढेर में से कुछ फाइलें देख रहा था।
            "यार.... तूने पिछले १० सालों में हुए आपराधिक मामलों के बारे में पता लगाने को क्यों कहा है? हमारा मकसद तो आर्या के खिलाफ सबूत जुटाना है। और आर्या तो सिर्फ एक साल पहले ही हमारे शहर में आया है।" अभय ने थोड़ी थकी हुई आवाज में कहा।

            "अभय तुम लोगों का कहना ठीक है, कि आर्या सिर्फ एक साल पहले इस शहर में आया। लेकिन ये भी तो सोच की वो आज से आठ सालों पहले इस शहर से गायब हो गया था। आठ साल बाद अचानक से इस शहर में जब वो लौटा तब वो एक माफिया बन चुका था। आज हर गैरकानूनी काम में उसका हाथ है। ऐसा करना आसान नहीं है। हो ना हो, आज आर्या की इस ताकत के तार जरूर उसकी इन आठ सालों की गुमनाम जिंदगी में ही मिलेंगे। देश के किसी हिस्से से तो आर्या ने शुरुआत की होगी। हमें यही पता करना है।" रुद्र ने लैपटॉप पर काम करते हुए कहा।

            "बात तो तेरी सही है। तुझे क्या लगता है? क्या किया होगा आर्या ने इन आठ सालों में?" अभय ने फाइल बंद करते हुए पूछा।

            "अभी मैं भी पक्के तौर पर तो कुछ कह नहीं सकता हूँ। लेकिन मेरा मानना है कि इतना बड़ा डर का साम्राज्य स्थापित करना किसी अकेले के बस की बात नहीं है। या तो आर्या ने छोटे-छोटे गिरोहों को धीरे-धीरे अपने कब्जे में किया होगा या फिर इन सब के पीछे किसी और का हाथ है।" रुद्र ने कुछ सोचते हुए कहा।

          "मतलब कोई ऐसा जिसने यहाँ तक पहुँचने में आर्या की मदद की है? फिर तो वो आर्या से भी बड़ा खतरा होगा हमारे लिए।" अभय ने थोड़ा चौंकते हुए कहा।

          "हो सकता है। लेकिन अभी हम कुछ कह नहीं सकते। अभी हमें सारी संभावनाओं के हिसाब से सोचना होगा। और तू ये बातें करने के बहाने जो फाइलें खिसका रहा है ना, सब समझ रहा हूँ मैं। काम कर अपना आलसी।" रुद्र ने पहले अभय की ओर फिर फाइलों की ओर देखते हुए कहा।

         "उठाले अपनी पोस्ट के फायदे।" अभय ने अनमने भाव से एक फाइल उठाते हुए कहा।

          रुद्र मुस्कुराकर फिर से अपना काम करने लगा। अचानक से दरवाजा खुला। बाहर एक ३० साल के आसपास का पुलिसवाला खड़ा था। रुद्र ने उसे अंदर आने का इशारा किया। उसने अंदर आकर रुद्र और अभय को सल्यूट किया।
       
         "सर एक खास बात पता चली है। शायद हमें इससे कुछ मदद मिले।" उस पुलिस वाले ने एक फटी-पुरानी फाइल को रुद्र के टेबल पर रखते हुए कहा।

          "ऐसी क्या खबर है विजय?" रुद्र ने उस फाइल को अपनी ओर खींचते हुए कहा।

           "सर आज से पाँच साल पहले उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुछ अजीब घटनाएँ घटी थीं। एक साथ कुल बारह लोगों के कत्ल हुए थे। और ये बारह के बारह लोग किसी ना किसी गैंग के हेड थे।" सब-इंस्पेक्टर विजय ने कहा।

           "फिर बाकी के गैंग मेंबर्स का क्या हुआ?" अभय ने पूछा।

            "सर उन गैंग मेंबर्स के बारे में कुछ पता नहीं चला। सब के सब अचानक ही गायब हो गए।" विजय ने अभय की ओर देखते हुए कहा।

           "इस फाइल के हिसाब से इन लोगों के कातिल के बारे में कुछ पता नहीं चल सका। इसके आगे इस फाइल में कुछ नहीं लिखा है। तो इन हत्याओं का इस केस से क्या लेना-देना है?" रुद्र ने फाइल के पन्ने पलटते हुए कहा।

           "सर जिस पुलिस स्टेशन में ये फाइल थी, वहाँ के रज़िकॉर्ड रूम में दो साल पहले आग लग गयी थी। इस वजह से बहुत सारी फाइल्स जल गयीं। जब बची हुई फाइल्स को हटाया जा रहा था उस समय इस फाइल के भी कुछ पन्ने गायब हो गए थे। इसलिए मैंने उस केस के जांच अधिकारी से इस बारे में पूछा।" विजय ने रुद्र से कहा।

         "क्या पता चला उनसे बात करने के बाद?" रुद्र ने जिज्ञासा से पूछा।

         "सर उन्होंने कहा कि उस फाइल का सिर्फ एक ही पन्ना गायब हुआ था। उस पन्ने में ये लिखा था कि हर वारदात वाली जगह से एक ऐसे इंसान की उंगलियों के निशान मिले थे, जिसकी दाहिने हाथ की चार उंगलियां या तो जली हुई थीं या फिर कटी हुई।" विजय ने आखरी के शब्दों पर थोड़ा जोर देते हुए कहा।
    
           यह सुनते ही अभय और रुद्र की आँखों में चमक आ गयी। आखिरकार रुद्र का शक सही साबित हुआ था।

           "बहुत अच्छे विजय।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
      
           "धन्यवाद सर।" विजय ने खुशी से कहा।
  
           "विजय, एक काम करो, मुझे उन बारह लोगों की पूरी जानकारी लाकर दो। नॅशनल क्रिमिनल डेटाबेस में ढूँढो, कहीं न कहीं उन संघटनों के बारे में पता चलेगा। कुछ भी पता चलने पर मुझे तुरंत खबर करो।" रुद्र ने आदेशात्मक लहजे में कहा।

           "जी सर। जय हिंद।" विजय ने उन्हें सल्यूट किया और वहाँ से चला गया।

           "रुद्र, तूने जो सोचा था वो सच निकला। इसका मतलब आर्या ने ऐसे छोटे आपराधिक संघटनों से जुड़े लोगों पर धीरे-धीरे अपना कब्जा जमाया और आज इसने अपनी पहुँच हर गैरकानूनी काम तक है। लेकिन इसके आगे हमें क्या करना है?" अभय ने अपने हाथ से फाइल नीचे रखते हुए कहा।

            "नहीं, ऐसा नहीं है। ये फाइल पढ़ कर देख।" रुद्र ने विजय द्वारा दी गई फाइल अभय की तरफ बढ़ाई।

            कुछ देर तक अभय ने गौर से उस फाइल को पढ़ा। अचानक से अभय ने रुद्र की ओर देखा। रुद्र के चेहरे पर थोड़े गंभीर भाव थे।
      
           "यार इसके हिसाब से उन लोगों का कत्ल राइफल से हुआ है।" अभय ने थोड़ा चौंकते हुए कहा।

           "वही तो, और उन सभी के सर के बीचोंबीच गोली मारी गई थी। आर्या के एक हाथ में सिर्फ अंगूठा है। कोई भी एक हाथ से इतना सटीक निशाना नहीं लगा सकता।" रुद्र ने कुर्सी से उठते हुए कहा।

          "इसका क्या मतलब हो सकता है?" अभय ने रुद्र की ओर देखते हुए पूछा।

          "इसका मतलब वो हत्याएँ किसी और से या फिर किसी निशानेबाज से करवाई गई थीं। आर्या वहाँ बस काम पूरा हुआ या नहीं, ये देखने गया होगा।" रुद्र पास ही रखी अलमारी में कुछ फाइलें रखता हुआ बोला।

          "मतलब ये काम किसी शार्प शूटर से करवाया गया होगा?" अभय ने आश्चर्य से पूछा।

          "हाँ। और एक शार्प शूटर एक काम के लिए ही लगभग लाखों रुपए लेता है, तो फिर उसने तो बारह खून किए थे। इतना सारा पैसा आर्या के पास कहाँ से आया होगा?" रुद्र ने फिर से अपनी कुर्सी पर बैठते हुए कहा। 

          "अरे यार! आर्या के पिता शहर के मशहूर ज्वेलरी शॉप के मालिक थे। उसके चाचा मंत्री थे। तो फिर उसको पैसे की कमी कैसे हो सकती है?" अभय ने कहा।

         "नहीं। उस हादसे के बाद मैं उसके परिवार से मिला था। उसके पिता ने उससे सारे संबंध तोड़ लिए थे और उसके चाचा और पिता दोनों साथ ही रहते थे। उसके पिता ने उसके चाचा को सख्त मना कर दिया था उसकी मदद करने से। और ऐसा भी नहीं है कि उसके चाचा ने उसकी चुपके से मदद की हो, क्योंकि उसके चाचा आज से ७ साल पहले ही बीमारी की वजह से मर गए थे।" रुद्र ने गगंभीरता से कहा।

            "इसका मतलब......."
       
            "हाँ, किसी ने आर्या की मदद की थी। आर्या के इतना ताकतवर बनने के पीछे किसी और का हाथ है।" रुद्र ने अभय की बात को बीच में ही काटते हुए कहा।

           "मतलब कोई ऐसा भी है, जो हमारे लिए आर्या से भी बड़ा खतरा है हमारे लिए।" अभय ने चिंता भरे स्वर में कहा।

           "बिल्कुल। और भी ऐसे कई केसेस हैं जिसमे अचानक से ही एक जगह पर अपराध बढ़ गया है। मुझे लगता है कि इन सब के पीछे किसी बड़े संघटन का हाथ है। हम जितना सोच रहे हैं, खतरा उससे बहुत ज्यादा बड़ा है।" रुद्र ने गंभीरता कायम रखते हुए कहा।

           "चल। लग जाते हैं काम पर। मैं विराज और विकास से भी बात कर लेता हूँ।" अभय ने खड़ा होते हुए कहा।

          अभय कैबिन के बाहर निकल गया। रुद्र अब भी किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। कुछ देर बाद रुद्र ने घड़ी देखी। रात के ९  बज चुके थे। रुद्र उठा और सारे चीजों को उनकी जगह पर रख कर घर के लिए निकल गया।









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            "अभी मैं जे. बी. रोड से पुणे जा रही हूँ। मेरी एक पुरानी स्कूल की दोस्त ने मुझे मेल किया था कि इस वक्त वो अमेरिका से यहाँ आयी हुई है। मैंने सोचा उससे मिल लूँ।" एक २७-२८ साल की लड़की ने गाड़ी चलाते हुए किसी से फोन पर कहा।

            "वो सब तो ठीक है प्रिया, लेकिन तू उस रास्ते से क्यों जा रही है? हाईवे पकड़ लेती, आसान पड़ता। और वो रास्ता काफी सुनसान भी तो रहता है।" दूसरी ओर से किसी लड़के की आवाज आयी।

             "हाँ मुझे पता है रोहन। लेकिन जीपीएस में दिखाया कि हाईवे की तरफ जाने वाले रास्ते पर ट्रैफिक है। इसलिए मैं यहाँ से जा रही हूँ।"  प्रिया ने कहा।

             "ठीक है, अपना ध्यान रखना और पहुँच कर फ़ोन करना।" रोहन ने चिंतित स्वर में कहा।

             "शिट यार!! इस गाड़ी को भी अभी पंक्चर होना था।" प्रिया ने गाड़ी रोककर उतरते हुए कहा।
   
             प्रिया ने फोन अभी भी कान से लगाया था। प्रिया गाड़ी के पहिए को देख ही रही थी कि अचानक किसी ने उसके सर पर किसी डंडे से हमला किया। प्रिया जोर से चीख उठी।
   
              "क्या हुआ प्रिया? हेलो!.....हेलो प्रिया.....!" रोहन ने घबराकर कहा।

              प्रिया बेहोश हो गई थी। दो हट्टे-कट्टे आदमियों ने उसे कंधे पर उठाया और पीछे खड़ी काली रंग की गाड़ी में डाल दिया।

              कुछ देर बाद रोहन पुलिस को लेकर उस
जगह पहुँच गया। प्रिया की गाड़ी वहीं खड़ी थी। गाड़ी के आगे वाले पहिए की हवा निकल चुकी थी। सड़क पर कुछ कीलें गिरी हुई थीं, जिससे साफ पता चल रहा था की गाड़ी को जान-बूझकर पंक्चर किया गया था। पुलिस और कोई सुराग ढूँढने की कोशिश कर रही थी। सीनियर इंस्पेक्टर विकास भी वारदात की जगह पर पहुँच गया था।

            "तुमने फोन पर कुछ और सुना था? किसी और की आवाज वगैरा कुछ?" विकास ने रोहन से पूछा।

            "नहीं सर। मैंने और कुछ नहीं सुना। बस प्रिया की चीख सुनाई.......।" कहते हुए रोहन फिर से रोने लगा।

            "लेकिन प्रिया ने ऐसा क्यों कहा होगा कि हाईवे वाले रास्ते पर ट्रैफिक था। वो रास्ता तो हमेशा खाली ही रहता है। अ...... पाटिल, एक काम करो, गाड़ी को एक्सपर्ट के पास चेक करवाओ। और पता करो इस एरिया में ऐसे और भी हादसे हुए हैं क्या?" विकास अपनी बाइक पर बैठता हुआ बोला।

            "ठीक है सर। सर आप जा रहे हैं?" हवलदार पाटिल ने पूछा।

            "हाँ। एसीपी साहब ने बुलाया है। तुम मुझे सारी जानकारी मेल कर देना। मैं वहाँ पहुँचते ही देख लूँगा। विकास ने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा।

           पाटिल ने विकास को सल्यूट किया और अपने काम पर लग गया।








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               शाम के ४ बज रहे थे। विकास रुद्र के कैबिन में पहुँच गया था। अभय और विराज भी वहीं मौजूद थे। विकास एक कुर्सी लेकर रुद्र के पास जाकर बैठ गया।
     
               "बोल रुद्र, क्या बताना चाह रहा था तू? वैसे ही इस लेट-लतीफ के चक्कर में काफी देर हो गई।" अभय ने विकास को चिढ़ाते हुए कहा।

              "ओ भाई, मैं एक केस की तहकीकात के लिए गया हुआ था।" विकास ने सफाई देते हुए कहा।

            "बस करो यार। हमेशा तुम दोनों की मस्ती चालू रहती है। तू बता रुद्र। क्या पता चला है।" विराज ने अभय और विकास को झिड़कते हुए कहा।

            रुद्र ने विकास और विराज को सारी बातें बताई, जो पिछले दिन उसे और अभय को पता चली थीं। रुद्र की बात खत्म होने के बाद सभी इसी बारे में सोच ही रहे थे कि अचानक विकास का फोन बजा।
           "हाँ पाटिल, बोलो क्या हुआ?" विकास ने फोन उठाकर कहा।

           "तुमने मुझे मेल कर दिया है। ठीक है, मैं अभी चेक करता हूँ।" कहते हुए विकास ने फोन काट दिया।

          "क्या हुआ विकास? कौन था?" रुद्र ने पूछा।

          विकास ने सुबह की घटना के बारे में सब कुछ बताया। विकास अपने फोन में पाटिल द्वारा भेजा गया मेल पढ़ने लगा। पूरा मेल पढ़ने के बाद विकास थोड़ा परेशान दिखाई देने लगा।

          "क्या हुआ? इतना टेंशन में क्यों लग रहा है?" विराज ने विकास की ओर गौर से देखते हुए पूछा।

          "यार बात ही कुछ ऐसी है। पिछले तीन महीनों में उस रास्ते पर १३ अपहरण हो चुके हैं। और जिन लोगों के अपहरण हुए उनमें किसी तरह का कोई संबंध नहीं था। उन सभी को कभी नकली इंटरव्यू, तो कभी नकली दोस्त या रिश्तेदार बनकर फोन करके वहाँ बुलाया गया और उन सभी की गाड़ियों के जीपीएस को हैक कर लिया गया था। उन्हें जान-बूझकर उस रास्ते पर भेजा गया। उन सभी की उम्र अलग-अलग थी। कुछ २७-२८ साल के लड़का-लड़की थे, तो कुछ ४०-४५ साल के आदमी-औरत। सभी के काम भी अलग-अलग थे।" विकास ने थोड़ी हैरानी से कहा।

             "कुछ ना कुछ तो खास होगा इन लोगों में। एक काम करते हैं, हम सब मिलकर इस केस पर ध्यान देते हैं। मुझे लगता है, इसके पीछे किसी बड़े गिरोह का हाथ है।" रुद्र ने सभी की ओर देखते हुए कहा।

              "ठीक है।" अभय, विराज और विकास ने एक साथ कहा।










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           क्या रुद्र पता कर पाएगा आर्या के गुप्त मददगार के बारे में? आखिर क्या है इन लोगों के अपहरण का राज? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।



नोट: मुझे भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैंने इतना जल्दी अगला भाग कैसे लिख लिया। वैसे ये लगातार दो दिन की छुट्टी का कमाल है।
          आप सभी को नवरात्र और भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ😊।

                                                  अमन मिश्रा
                                                        🙏








              

           

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1 Comments

Shaba

05-Jul-2021 03:16 PM

बहुत ही बढ़िया पार्ट। कहानी बिल्कुल सधी हुई सी आगे बढ़ रही है। संवाद भी एकदम नपे तुले हैं। अब चारों दोस्तों की चौकड़ी क्या कमाल दिखाती है ये देखना दिलचस्प होगा।

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